बॉम्बे हाईकोर्ट ने 21 जुलाई 2025 को 2006 के मुंबई लोकल ट्रेन धमाकों के मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया। इनमें से 5 को निचली अदालत ने फांसी और 7 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। 11 जुलाई 2006 को मुंबई की पश्चिमी उपनगरीय रेलवे की सात लोकल ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों में 189 लोगों की जान गई थी और 829 से अधिक लोग घायल हुए थे।
हादसे का विवरण
11 जुलाई 2006 को शाम 6:23 से 6:28 बजे के बीच महज 11 मिनट में मुंबई की पश्चिमी रेलवे लाइन पर चलने वाली सात लोकल ट्रेनों के फर्स्ट-क्लास डिब्बों में सिलसिलेवार बम धमाके हुए। ये विस्फोट माटुंगा रोड, माहिम जंक्शन, बांद्रा, खार रोड, जोगेश्वरी, भायंदर, और बोरीवली स्टेशनों के पास हुए।
हादसे के प्रमुख तथ्य:
- 11 जुलाई 2006 को 7 ट्रेनों में विस्फोट
- 189 मौतें और 829+ घायल
- 2015 में 12 को दोषी ठहराया (5 को फांसी, 7 को उम्रकैद)
- 2025 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सभी बरी किए
- जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता पर सवाल
हाईकोर्ट का फैसला
21 जुलाई 2025 को, बॉम्बे हाईकोर्ट ने विशेष MCOCA कोर्ट के 30 सितंबर 2015 के फैसले को रद्द कर दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, "अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ केस साबित करने में पूरी तरह विफल रहा। यह मानना मुश्किल है कि आरोपियों ने अपराध किया। इसलिए उनकी सजा को रद्द किया जाता है।"
फैसले के प्रमुख आधार:
- सबूतों की कमी और खराब हैंडलिंग
- गवाहों की अविश्वसनीयता
- यातना के तहत लिए गए कबूलनामे
- पहचान परेड में प्रक्रियात्मक खामियां
प्रतिक्रियाएं
फैसले ने विभिन्न हलकों में मिश्रित प्रतिक्रियाएं उत्पन्न कीं। बचाव पक्ष की वकील ताहेरा कुरैशी ने कहा, "हम इस फैसले से बहुत खुश हैं, क्योंकि हम 19 साल से इसकी प्रतीक्षा कर रहे थे।" हालांकि, कुछ राजनेताओं और नागरिकों ने फैसले पर निराशा जताई।
"यह बहुत दुखद है। यह दिखाता है कि हमारा केस पुख्ता नहीं था।"
- शिव सेना (UBT) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी
जांच एजेंसियों पर प्रभाव
यह फैसला महाराष्ट्र ATS और जांच एजेंसियों के लिए एक बड़ा झटका है। कोर्ट ने जांच में प्रक्रियागत खामियों, जैसे सबूतों की खराब हैंडलिंग और गवाहों की विश्वसनीयता की कमी, पर गंभीर टिप्पणियां कीं।
निष्कर्ष
2006 के मुंबई ट्रेन धमाकों का मामला भारत के सबसे भीषण आतंकी हमलों में से एक था। 19 साल बाद आए इस फैसले ने पीड़ितों के परिवारों और समाज में कई सवाल छोड़ दिए हैं। यह फैसला आतंकवाद से संबंधित मामलों में जांच और अभियोजन की प्रक्रिया को और मजबूत करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
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